शापित अनिका: भाग ४

सारा वातावरण अंधकार में डूबा हुआ था। चारों तरफ कोहरे की चादर फैली हुई थी। हर तरफ अधजली चितायें थीं, जिनसे उठने वाले दुर्गंध से सिर फटा जा रहा था। इन्हीं जलती हुई चिताओं के बीच आशुतोष लड़खड़ाते कदमों से भागे जा रहा था। उसका पूरा शरीर लहुलुहान था। उसके शरीर के हर भाग पर चोट के निशान थे, मानों किसी तलवार से वार किये गये हों।




अचानक जमीन से एक हाथ निकला, जिसने उसका पैर जकड़ लिया। आशुतोष अपना संतुलन नहीं बना पाया और धड़ाम से औंधें मुंह जमीन पर गिर पड़ा। उसने ड़रकर पीछे देखा तो एक अजीब सा इंसान दिखाई दिया। उसका पूरा शरीर जला हुआ था और पूरे शरीर से रक्त और मवाद बह रहा था। सिर पर जटा बनी थी और उसके लंबे बाल उसके चेहरे को ढके थे, जिनके बीच से बस उसकी दो लाल आंखे दिखाई दे रही थी।




"अनिका मेरी है.... वो सिर्फ मेरी है।" कहते हुये उस अघोरी ने आशुतोष पर छलांग लगा दी और उसने चीखते हुए आंखे खोल दी।




जैेसे ही उसने आंखे खोलीं तो पाया कि वो अपने बिस्तर पर लेटा था और पूरा परिवार उसके इर्द- गिर्द जमा था। मि. श्यामसिंह और विमला देवी बैचेनी से उसे देख रहे थे, जबकि मिशा और सिड़ उसके अगल- बगल बैठे थे और उनकी आंखों में आंसू तैर रहे थे।




"व्हट हैपन्ड?"आशुतोष ने चारों को अपनी तरफ देखता पाकर पूछा।




"ये तो हमें तुमसे पूछना चाहिये था।" विमला देवी गुस्से में बोलीं- "क्यूं चिल्ला रहे थे? पिछले आधे घंटे से तुम्हें जगा रहे हैं।"




"क्या?" आशुतोष चौंककर बोला- "सॉरी.... वो मैं सपना देख रहा था। पता नहीं साले अघोरी की मुझसे क्या दुश्मनी है? पिछले सात दिन से मुझे मारने की कोशिश कर रहा है, पर अबतक कामयाब नहीं हुआ।" आशुतोष ने मुस्कुराकर कहा तो मिशा और सिड़ के चेहरे पर मुस्कुराहट तैर गई, जबकि श्यामसिंह और विमला देवी का चेहरा सफेद पड़ गया और दोनों तेजी से कमरे से बाहर निकल गये।




"ओह.... अच्छा! मुझे लगा कि भाभी कुछ ज्यादा ही तेज लव- बाइट दे रही थी।" सिड़ ने कहा तो आशुतोष और मिशा उसे घूरने लगे।




"व्हट....? ओह.... जब मैं आपकी आवाज सुनकर यहां आया तो आपकी छाती पर ये स्कैच मिला।" कहते हुये सिड़ ने एक A4 साइज का पन्ना आशुतोष को दिखाया जिस पर उसी स्कूटी वाली लड़की का पैंसिल- स्कैच था।




"व्हट रबिश?" कहकर आशुतोष ने तेजी से वो पन्ना छीन लिया और उठकर बाथरूम की ओर भागा लेकिन अचानक उसके पैर मैं दर्द उठा और वह लड़खड़ाते हुये बाथरूम में घुसा। बाथरूम का दरवाजा बंद कर उसने पैर की तरफ देखा तो पाया कि पैर नीला पड़ गया था और वहां पर किसी की पकड़ का निशान था।




"व्हट द हैल.... ये निशान.... आऊच!" आशुतोष ने जैसे ही उस निशान को छुआ तो निशान से दर्द की लहरें उठने लगी।




"अरे अघोरी भाई, क्यूं मेरे पीछे पड़े हो यार! मैं किसी अनिका को नहीं जानता।" बड़बड़ाते हुये उसने नल खोला और मुंह धोने लगा।




"कब से चल रहा है ये?" आशुतोष के बाथरूम से निकलते ही मिशा ने पूछा, जबकि सिड़ एकटक आशुतोष को देखे जा रहा था।




"जिस दिन से यहां आया हूं, तब से...." आशुतोष आरामकुर्सी पर ढ़ेर होते हुये बोला- "रोज रात को ऐसे ही सपने आते हैं यार.... और वो अघोरी हर बार अलग स्टाइल में टॉर्चर करता है लेकिन आज दिन में भी...."




"मैं उस लड़की के बारे में पूछ रही हूं ईड़ियट।" मिशा चिढ़कर बोली- "अब समझ आया कि उस दिन शादी के नाम से क्यूं चिढ़ रहे थे।"




"ऐसा कुछ नहीं है यार!" आशुतोष झेंपते हुये बोला- "मैं तो उससे बस एक बार मिला हूं। इन फैक्ट मैं तो उसका नाम भी नहीं जानता।"




"ओह.... तो ये लव एट फर्स्ट साइट वाला मैटर है।" सिड़ ने कहा तो आशुतोष ने शरमाकर गर्दन झुका ली।




"ओह.... ब्लशिंग अं...." मिशा छेड़ते हुये बोली- "जब मोहतरमा के बस जिक्र से ये हाल है तो बाई चांस अगर सामने आ गई तो तुम तो रसातल में पहुंच जाओगे।"




"क्या यार...." आशुतोष हंसते हुये बोला।




"अच्छा चलो! मेरी कोचिंग का वक्त हो गया है। मुझे ड्रॉप कर दो।" मिशा ने कहा।




"लेकिन पापा ने तो तुझे स्कूटर दिलाया है न!" सिड़ को मि. श्यामसिंह से बस यही एक शिकायत थी कि जब दीदी को स्कूटर गिफ्ट किया तो मुझे बाइक क्यूं नहीं मिली?




"स्कूटी सर्विसिंग के लिये गई है।" मिशा ने सिड़ को घूरते हुये कहा।




"तो ऑटो से चली जा!" आशुतोष ने सुझाया- "वैसे भी मुझे एक अर्जेंट काम है।"




"हां, जानती हूं कौन सा काम है।" मिशा ने मुंह टेड़ा कर कहा- "फालतू में उसके लिये देहरादून की सड़कें नापोगे और क्या? बाय द वे आप उसको ढूंढते कहां हो?"




"अब तक तो रिस्पना पुल तक खाक छान चुका हूं।" आशुतोष ने आह भरी लेकिन फिर झेंपते हुये बोला- "लेकिन आज मुझे डॉक्टर रमेश से मिलना है। उनके असिस्टेंट...."




"मेरे सामने झूठ न ही बोलो तो बेहतर होगा.... तुमसे होगा ही नहीं। डॉ. रमेश हर्ट- सर्जन है ईड़ियट। झूठ बोलने से पहले न थोड़ी रिसर्च कर लिया करो।" मिशा ने कहा तो सिड़ की हंसी छूट गई।




"और बाय द वे आप उसको सड़कों पर ढूंढते हो क्या? इस एज- ग्रुप की लड़कियों को पटाने के लिये तो कॉलेज और हॉस्टल्स के चक्कर लगाने पड़ते हैं।" सिड़ हंसते हुये बोला।




"क्या करूं मेरे भाई? तेरी तरह लड़की- बाज नहीं हूं न! तो इतना आइड़िया नहीं है।" आशुतोष ने मुस्कुराकर कहा।




"तो आज आप मुझे कोचिंग ड्रॉप करोगे न!" मिशा ने रोतेली शक्ल बनाकर पूछा तो आशुतोष और सिड़ की हंसी छूट गई।




"हां, छोड़ दूंगा। अब ये नौटंकी बंद कर!" आशुतोष ने मुस्कुराते हुये उसके कान उमेटते हुये कहा।




* * *






आशुतोष सिड़ को साथ लेकर मिशा के कोचिंग- सेंटर पहुंचा तो पाया कि सेंटर अभी बंद था। दरअसल इसे कोचिंग- सेंटर कहना ठीक नहीं होगा। ये कोई मकान था, जिसके बाहर गेट पर "यहां दसवीं और बारहवीं कक्षा के सभी विषयों की ट्यूशन दी जाती है।" का बोर्ड टंगा था। मिशा आगे की सीट पर रिलैक्स मोड़ में पसरी थी, जबकि आशुतोष और सिड़ गौर से कोचिंग- सेंटर को देख रहे थे।




"क्या यार! तूने फिर से कोई शरारत की है न!" आशुतोष ने मिशा को आंखे दिखाई- "तेरा कोचिंग- सेंटर तो बंद है।"




"आधे घंटे बाद खुलेगा।" मिशा ने शांति से कहा- "हमारी जो मिस है न, वों हैं कॉलेज स्टूडेंट इसलिये सेंटर साढ़े चार के बाद खुलता है।"




"तो अभी तो आधा घंटा बचा है।" सिड़ ने घड़ी देखते हुये कहा- "भाई, तब तक तो हम डी.ए.वी. में देखकर आ जाते कि शायद आपकी आइटम.... आई मीन भाभी वहां पढ़ती हो।"




"सिड़ तू अपनी लैंगवेज पर काबू रख...." मिशा गुर्राई- "और भाई आप क्यूं टेंशन ले रहे हो यार! जहां हफ्ता कट गया वहां एक दिन और सही.... चलो तब- तक त्यागी के समोसे खाते हैं।" कहते हुये मिशा गाड़ी से उतर गई।




आशुतोष ने सिड़ की ओर देखा और एक गहरी सांस छोड़कर मिशा के पीछे त्यागी होटल में दाखिल हो गया, जो उस मकान के ठीक सामने रोड़ की दूसरी तरफ था। दुकान पर ज्यादा भीड़ नहीं थी, अलबत्ता एकाध कस्टमर बैठे थे। आशुतोष ने तीन समोसे और तीन ड्यू का ऑर्डर दिया और तीनों ने एक कोने की टेबल पकड़ ली। ऑर्डर सर्व होने तक तीनों शांति से बैठे रहे। कुछ ही देर में एक लड़का आकर उनका ऑर्डर टेबल पर रख गया।




"भाई एक बात बोलूं?" समोसे का एक बाइट लेते हुये मिशा बोली।




"जैसे तू बिना बोले रहने वाली है।" आशुतोष ने बिना उसे देखे कहा।




"आप कहां- कहां उस स्कूटर वाली को ढूंढते फिरोगे? मेरे पास एक आइड़िया है।"




"क्या?" आशुतोष ऊबते हुये बोला, जबकि सिड़ के कान खड़े हो गये।




"आप न मेरी मिस को पटा लो।" मिशा फुसफुसाई- "एक बार आपने उन्हें देखा न तो गॉड़ प्रॉमिस उस स्कूटर वाली को भूल जाओगे। अभी आने वाली है। बस एक बार देख लेना।" आशुतोष ने आंखे दिखाई तो मिशा तेजी से बोली- "अगर पसंद न आ जाय तो मेरा नाम बदल देना।"




"तेरा दिमाग खराब तो नहीं हो गया?" आशुतोष ने आंखे तरेरते हुये गुस्से में कहा- "देख लाइफ में मुझे पहली बार कोई लड़की पसंद आई है और वही लास्ट है। अगर मिली तो ठीक वरना वैसे भी अकेला तो जी ही रहा हूं। इसलिये आइंदा से ऐसी चीप बातें मेरे सामने मत करना।"




"आई बेट, एक बार मेरी मिस को देख लिया तो मुझे मिलवाने के लिये थैंक्स कहोगे।" मिशा ने हंसकर कहा- "ड्यूड़ शी इज सो ब्यूटीफुल.... पता है क्या? उनको कितने ही बुके और लेटर्स तो हमारे ही सामने मिले हैं।"




"तू चुप बैठेगी या मैं घर लौट जाऊं?" आशुतोष कुर्सी से उठते हुये बोला।




"अरे शांत गदाधारी भीम शांत! आखिरी बात सुन लो फिर चुप हो जाऊंगी।" मिशा ने हाथ पकड़कर आशुतोष को बैठाते हुये कहा- "हमारी मिस न ड़ी.ए.वी. में बी.एस.सी. फाइनल ईयर की स्टूडेंट है। अगर पसंद आ जाय तो कल से चक्कर लगाना शुरू कर देना।" मिशा की इस बात पर तीनों की हंसी छूट गई।




तीनों को होटल में करीब पन्द्रह मिनट हो चुके थे। इस दौरान सिड़ और मिशा लगातार आशुतोष को छेड़ रहे थे। आशुतोष की नजर हर दो मिनट बाद इस उम्मीद में बाहर की तरफ उठ जाती कि कब वो मैड़म आये और मिशा से उसका पीछा छूटे। इस बार आशुतोष ने उधर देखा तो उसे वही लड़की स्कूटी पर आते दिखी, जिससे उसके चेहरे पर हंसी तैर गई।




आशुतोष हड़बड़ाकर कुर्सी से उठा और तेजी से अपनी स्कॉर्पियो की ओर बढ़ गया, ताकि उसका पीछा कर उसका पता ठिकाना मालूम कर सके लेकिन जैसे ही वो सड़क पार करने वाला था, उसे ये देखकर ताज्जुब हुआ कि लड़की ने स्कूटी उसी मकान के आगे रोक दी और गेट खोलकर स्कूटी अंदर कर दी। मिशा और सिड़ भी दौड़ते हुये उसके पीछे आये।




"मिशा! ये.... ये तो...." आशुतोष को अपनी खुशी व्यक्त करने के लिये शब्द नहीं मिल रहे थे।




"मैंनें कहा था न कि मिस को देखते ही आप उनसे मिलवाने को थैक्स कहोगे।" मिशा ने मुस्कुराकर जवाब दिया।




उधर सिड़ की कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। वो कभी मिशा तो कभी आशुतोष के चेहरे को देखता रहा। आखिरकार कुछ देर बाद बोला- "जो भी कहना- सुनना हो बाद में कर लेना, पहले त्यागी का बिल चुका दो। हम तो फिर भी भाग जायेंगें लेकिन मिशा को तो रोज यहीं ट्यूशन पढ़ने आना है!"




सिड़ की बात सुनकर दोनों की हंसी छूट गई। आशुतोष ने पर्स से एक पांच सौ का नोट निकालकर सिड़ को देते हुये कहा- "और कुछ खाना है तो खा ले और बचे पैसे भी रख लेना। कम पड़े तो और ले लेना।"




पांच सौ का नोट पाकर सिड़ खुश होकर अंदर चला गया। तब आशुतोष ने आंखों में आंसू भरकर मिशा से कहा- "यू नो मिशा.... कभी- कभी लगता है कि मां मुझे तुम्हारे रूप में वापस मिल गई है।"




"बस करो ड्यूड़, अब रूलाओगे क्या?" मिशा ने मुस्कुराकर कहा तो आशुतोष ने उसे गले से लगा लिया- "थैंक्यू.... थैंक्यू सो मच मिशा.... तुम्हारा ये एहसान में जिंदगी भर नहीं भूलूंगा।"




"व्हो.... व्हो.... बस कर बॉस! ये कुछ ज्यादा नहीं हो रहा?" मिशा आशुतोष के बाहुपाश से मुक्त होकर बोली- "वैसे भी अभी सिर्फ ठिकाना पता चला है लेकिन उसको पटाना जरा टेड़ी खीर है। और एहसान की तो कोई बात ही नहीं है। इसमें मेरा भी फायदा है। इसने कोचिंग में बहुत टॉर्चर करा है तो जब भाभी बनकर आयेगी तो पूरा हिसाब चुकाऊंगी। फिर भी अगर तुम्हें अहसान वाली फीलिंग्स आ रही है तो रिलैक्स मैन.... अगर फ्यूचर में मुझे कोई पसंद आया तो तुम उसको पटाने में मेरी हेल्प कर देना।" 




"श्योर!" आशुतोष ने हंसते हुये अपनी आंखों से आंसू साफ किये।




"यूक.... ऐसे आस्तीन से कौन साफ करता है? तुम जेब में एक रूमाल नहीं रख सकते?" मिशा उल्टी आने की एक्टिंग करते हुये बोली।




"मम्माज अवतार हं...." आशुतोष ने मुस्कुराते हुये उसके गाल खींचे तो वो भी हंस दी।




"मिशा....! आज टाइम से पहले? रियली सरप्राइजिंग! और ये मिस्टर कौन हैं?" दोनों ने आवाज की दिशा में देखा तो अनिका खड़ी थी।




"ओह.... गुड़ इवनिंग मिस। अं.... वो मैंनें आपको अपने भाई के बारे में बताया था न! जिन्हें मम्मी- पापा ने घर से निकाल दिया था। ये वहीं हैं। अभी पिछले हफ्ते ही डॉक्टरी खत्म कर लौटे हैं। घर पर मम्मी- पापा इनसे बात नहीं करने देते तो...." मिशा कह ही रही थी कि आशुतोष ने उसकी चिकोटी काटी। मिशा ने उसकी ओर देखा तो पाया कि उसकी आंखों से अंगारे बरस रहे थे।




"बाय द वे.... आपका इंट्रो करवा देती हूं। मिस ये हैं मेरे भाई डॉक्टर आशुतोष और आशु भैया.... ये है मेरी ट्यूटर मिस अनिका।" मिशा ने मुस्कुराकर कहा।




अनिका.... अनिका.... आशुतोष के दिमाग में घंटियां बजने लगी। पिछले सात दिनों से वो अघोरी लगातार इसी नाम की दुहाई देकर सपनों में उसपर हमले किये जा रहा था।




"हैलो डॉक्टर! नाइस टू मीट यू...." अनिका ने हाथ बढ़ाया।




"सेम हियर...." आशुतोष ने भी हाथ मिलाया लेकिन उसके दिमाग में हलचल मची थी।




"ओके.... आप लोग बातें कीजिये, मुझे जरा काम है। मिशा दस मिनट में मिलते हैं।" कहकर जैसे ही अनिका चलने को हुई कि मिशा ने पैर निकालकर अडंगा दे दिया। अनिका जैसे ही संतुलन खोकर गिरने लगी, आशुतोष ने उसे अपनी बाहों में संभाल लिया।




जैसे ही दोनों की नजरें मिलीं, दोनों दुनिया से बेखबर होकर एक दूसरे की आंखों में खो गए। अनिका की कत्थई आंखों में खोकर आशुतोष के दिल से एक ही आवाज आई- "इसके लिये भूतों से क्या भूतनाथ से भी लड़ जाऊं।"




"वाऊ.... इतनी जल्दी रोमांस भी शुरू हो गया।" सिड़ की आवाज से दोनों की तंद्रा भंग हुई। मिशा ने गुस्से से एक लात सिड़ के पैर पर जमा दी तो वह अकेले ही लंगड़ी खेलने लगा। अनिका और आशुतोष होश में आये और झेंपते हुये एक दूसरे से अलग हुए। अनिका शरमाती हुई त्यागी के होटेल की तरफ बढ़ गई, जबकि आशुतोष अतृप्त- तृषित नेत्रों से उसे जाता देखता रहा और अनिका को समझ ही नहीं पा रही थी कि ये आकर्षण क्या था।




* * *




क्रमशः




--- अव्यक्त

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1 Comments

Pamela

02-Feb-2022 01:53 AM

Bahut achcha...

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